Daily Current Affairs for UPSC, IAS, State PCS, SSC, Bank, SBI, Railway, & All Competitive Exams - 13 July 2020
तिब्बत पर चीन के कब्जे की कहानी
- तिब्बत चीन के दक्षिण पश्चिम में स्थित मुख्य रूप से एक पठारी क्षेत्र है !
- तिब्बत पठार विश्व का सबसे ऊंचा क्षेत्र है जिसकी औसत ऊंचाई 4900 मीटर है !
- यह पठारी क्षेत्र लगभग 24 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है जो चीन के क्षेत्रफल का लगभग चौथाई है !
- तिब्बत चीन के अलावा भारत, नेपाल, भूटान एवं म्यांमार के साथ सीमा साझा करता है !
- एक समय तिब्बत संप्रभु देश हुआ करता था ! उसके पास अपनी सेना और शासन व्यवस्था थी ! तिब्बत की सेना काफी ताकतवर थी और उसने भूटान और नेपाल को जीता था !
- 763 ईसवी में तिब्बत की सेना आधे चीन पर कब्जा कर चुकी थी और तिब्बत की सरकार चीन से टैक्स भी वसूलती थी !
- 822 ईस्वी में चीन और तिब्बत के बीच सीमा का निर्धारण हो गया !
- चौथी शताब्दी में बौद्ध धर्म तिब्बत पहुंचा ! इसे तिब्बत में अपनी पैठ बनाने में लंबा संघर्ष करना पड़ा लेकिन जैसे-जैसे यहां के लोगों ने बौद्ध धर्म के मर्म को समझा तिब्बत बदल गया !
- दलाई लामा अपनी आत्मकथा Freedom in Exile मे लिखते हैं - " तिब्बत के लोग स्वभाव से आक्रामक और युद्ध प्रिय है लेकिन बौद्ध धर्म ने उन्हें सबसे अलहदा बना दीया ! जैसे-जैसे बौद्ध धर्म में उनकी रुचि बढ़ी बाकी देशों से उनके संबंध राजनीतिक के बजाए अध्यात्मिक होती चले गए !"
- चीन में तिब्बत का दर्जा एक स्वायत्तशासी क्षेत्र के तौर पर है वही तिब्बत वर्तमान समय में चीन के अधीन अपनी स्वतंत्रा के लिए संघर्ष कर रहा है !
- कुनलुन एवं हिमालय के बीच स्थित यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक संसाधनों के साथ-साथ सामरिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है !
- चीन कहता है की तेरहवीं शताब्दी के मध्य से तिब्बत चीन का हिस्सा रहा है लेकिन तिब्बत के लोगों का कहना है कि तिब्बत कई शताब्दियों तक एक स्वतंत्र राज्य था और चीन या किसी अन्य देश ने जब भी उस पर कब्जा किया तब तब तिब्बत ने अपनी आजादी के लिए संघर्ष किया और स्वतंत्रता हासिल की ! इसलिए चीन का यह कहना कि तिब्बत 13वी शताब्दी से उसका हिस्सा रहा है बिल्कुल गलत है !
- तिब्बत की आजादी के संघर्ष को कुछ ऐतिहासिक घटनाओं के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं !
- मंगोल साम्राज्य के संस्थापक चंगेज खान का पोता कुबलई खान था ! जिसने 1260 से 1294 तक शासन किया !
- इसने अपने शासन के दौरान अपने साम्राज्य का विस्तार तिब्बत, चीन, वियतनाम तथा कोरिया तक कर लिया था ! अर्थात इस दौरान तिब्बत और चीन दोनों मंगोल साम्राज्य के अधीन थे !
- वर्ष 1358 में तिब्बत ने अपने आप को मंगोलों के शासन से मुक्त करा लिया !
- इसके लगभग 10 वर्ष बाद चीन भी मंगोलों से मुक्त हो गया !
- समय आगे बढ़ा और तिब्बत तथा चीन में अलग अलग शासकों ने अपने-अपने क्षेत्र में शासन किया !
- 1720 में चीनी सैनिकों ने तिब्बत में अपना हस्तक्षेप प्रारंभ किया और आगे चलकर तिब्बत के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया !
- 1865 तक आते-आते तिब्बत ने चीन द्वारा कब्जा किए क्षेत्रों पर फिर से अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया !
- इसके बाद 1906-07 पुनः चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण का प्रयास किया और कुछ समय के लिए तिब्बत के कुछ क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया !
- पुनः तिब्बत के लोगों ने एक बार संघर्ष किया और तिब्बत को चीन से मुक्त करवा लिया ! और 1913 में ही 13 वें दलाई लामा ने तिब्बत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी !
- सन 1913-14 मे चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों के बीच शिमला बैठक आयोजित हुई ! इस बैठक में इस विशाल पठारी राज्य को दो भागों में विभाजित कर दिया गया !
- पूर्वी भाग - जिसमें वर्तमान चीन के Qinghai और Sichuan प्रांत है ! इसे अंतर्वर्ती तिब्बत (Inner Tibbet) कहा गया !
- पश्चिमी भाग तिब्बत के राजनीतिक-धार्मिक गुरु लामा के नियंत्रण में रहा इसे वाह्य तिब्बत (Outer Tibbet) कहा गया !
- सन 1933 में 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद वाह्य तिब्बत (Outer Tibbet) पर भी चीनी नियंत्रण बढ़ने लगा !
- 1 अक्टूबर 1949 को माओत्से तुंग द्वारा पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की गई !
- नवगठित चीन ने प्रारंभ से ही विस्तार की नीति का पालन किया !
- स्थापना के कुछ ही दिन बाद अक्टूबर 1950 में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी तिब्बत में प्रवेश कर गई ! अक्टूबर के तीसरे सप्ताह तक तिब्बत की सेना ने सरेंडर कर दिया ! चीन ने तिब्बत को अपना हिस्सा घोषित कर दिया !
- नवंबर 1950 में 14वें दलाई लामा की ताजपोशी हुई इस समय दलाई लामा मात्र 15 वर्ष के थे !
- PLA ने तिब्बत में जमकर तबाही मचाई और हर विरोध का सख्ती से दमन किया !
- नवंबर 1950 में तिब्बत ने चीन के इस आक्रमण के विरोध में संयुक्त राष्ट्र में अर्जी लगाई लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा की संचालन समिति ने इस मुद्दे को टाल दिया !
- यूनाइटेड नेशंस तथा किसी अन्य बड़ी शक्ति द्वारा माओ को रोकने का प्रयास न करने के कारण चीन ने तिब्बत की संस्कृति और धर्म को भी परिवर्तित करने का प्रयास किया ! इस क्रम में तिब्बत के बौद्ध मठों का विनाश किया गया, धर्म का दमन किया गया, बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया गया, बड़े पैमाने पर लोगों को गिरफ्तार किया गया, निर्दोष महिलाओं और बच्चों का कत्लेआम किया गया !
- मई 1951 को बीजिंग में तिब्बती नेताओं एवं चीन के बीच बैठक की गई और इसमें 17 सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किया गया ! हालांकि समझौते के नियम और उसकी रूपरेखा चीन ने पहले ही तैयार करके रखा था और लगभग एकतरफा था ! इसमें तिब्बती नेताओं की बात नहीं सुनी गई थी और शक्ति के दम पर समझौता किया गया था !
- इस समझौते में चीन ने तिब्बत की स्वायत्तता बरकरार रखने की बात कही ! साथ ही यह कहा कि पुराने पदों को समाप्त नहीं किया जाएगा, दलाई लामा की शक्ति में कमी नहीं की जाएगी, मठों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा आदि आदि
- इसके साथ यह भी कहा गया कि तिब्बत, चीन की सरकार के अंदर काम करेगी, राजधानी ल्हासा में एक प्रशासनिक और मिलिट्री यूनिट बनाई जाएगी जो चीन और तिब्बत के बीच एक पुल का काम करेगी !
- इस समझौते से नाखुश होने के बावजूद तिब्बती लोग अपने आपको इसके अनुसार ढालने के लिए तैयार थे ! लेकिन चीन ने तो यह समझौता सिर्फ दिखावे के लिए किया था अर्थात चीन द्वारा इसका पालन नहीं किया गया ।
- चीन ने स्थानीय लोगों की आजादी पर पहरा लगा दिया, विरोधियों को टॉर्चर किया जाने लगा, चीनी सेना की वरीयता को स्थापित करने का प्रयास किया गया, तिब्बत की संस्कृति पर हमला करने का प्रयास किया गया, इससे लोगों में गुस्सा बढ़ने लगा !
- लोगों के विरोध को चीन ने विद्रोह समझा और पूरी शक्ति के साथ दमन किया !
- दलाई लामा जिनकी उम्र तो उस समय कम थी लेकिन राजनीतिक-सामाजिक दूरदर्शिता परिपक्व थी तथा चीनी नीतियों की समझ भी उनके अंदर थी । वह इन घटनाओं से आहत थे !
- उन्होंने बीजिंग संदेश भिजवाया कि वह चीन प्रमुख माओ से मिलना चाहते हैं !
- जुलाई 1954 में सड़क रास्ते दलाई लामा अपने साथियों के साथ बीजिंग पहुंचे !
- बीजिंग में वह माओ, प्रीमियर झाऊ एन लाई तथा डेंग जियाओ पिंग से मिले ! डेंग जियाओ पिंग ही वह व्यक्ति था जिसने 1989 में तियानमेन स्क्वायर पर प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर टैंक चलवाया था !
- दलाई लामा ने कहा कि तिब्बत चीन के अधीन रहने को तैयार है बशर्ते चीन 17 सूत्रीय समझौते का पालन करें और तिब्बत की संस्कृति को नुकसान न पहुंचाएं !
- माओ ने कहा- " दलाई लामा ! धर्मे एक अफीम है ! यह लोगों में जहर भर देता है तिब्बत और मंगोलिया में इस जहर को मैं सब करूंगा !”
- इस कथन से यह स्पष्ट हो गया कि चीन किसी भी ऐसे समझौते पर विचार करने को तैयार नहीं है जो उसकी आक्रमकता पर रोक लगा सके !
- PLA (पीपल लिबरेशन आर्मी ) का अत्याचार और चीन की सरकार का तिब्बत में हस्तक्षेप जारी रहा !
इस समय भारत क्या कर रहा था ?
- 1947 में आजाद हुआ भारत कई प्रकार की आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहा था और किसी भी तनाव का कारण खुद नहीं बनना चाहता था !
- प्रथम चुनाव के बाद जो भारतीय सरकार निर्वाचित होकर आई उसका यह भी मानना था कि वह किसी देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी !
- तिब्बत में चीन द्वारा किए जा रहे तिब्बत अधिग्रहण में भारत रूकावट या हस्तक्षेप पैदा न करें चीन इसके लिए भी रणनीति बना रहा था !
- 31 दिसंबर 1953 तथा 29 अप्रैल 1954 को भारत-चीन के बीच दो बार बैठक हुई और 29 अप्रैल 1954 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया जिसे पंचशील के नाम से जाना जाता है !
- इस समझौते के तहत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया !
- पंचशील में क्या-क्या शामिल था ?
- एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान !
- परस्पर अनाक्रमण
- एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करना
- सम्मान और परस्पर लाभकारी संबंध
- शांतिपूर्ण सह अस्तित्व
- नवंबर 1956 में बुद्ध के जन्म की 2500 वीं सालगिरह थी !
- इस अवसर पर दलाई लामा पहली बार भारत दौरे पर आए !
- दलाई लामा नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पहुंचे जहां से उन्हें हैदराबाद हाउस जाना था लेकिन चीनी दूतावास उन्हें अपने दूतावास चुपचाप (किडनैप) ले गई !
- वहां दलाई लामा को यह धमकी दी गई कि यदि उन्होंने भारत से नजदीकियां बढ़ाई तो यह उनके लिए ठीक नहीं होगा !
- भारत सरकार ने दूतावास पर जब दबाव डाला तब उन्हें छोड़ा गया !
- 11 हफ्ते दलाई लामा भारत में रहे और उन्हें भारत में तिब्बत की तरह प्यार मिला !
- दलाई लामा प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से भी मिले लेकिन नेहरू ने तिब्बत के मुद्दे पर कोई वादा करने से इनकार कर दिया !
- जब दलाई लामा वापस गए तब तिब्बत की स्थिति बहुत खराब हो चुकी थी !
- मई 1958 से फरवरी 1959 तक दलाई लामा की अंतिम परीक्षा हुई जिसमें वह सर्वोच्च अंक से उत्तीर्ण हुए ! और तिब्बत को पूर्ण रूप से दलाई लामा के नेतृत्व में छोड़ दिया गया !
- मार्च 1959 में दलाई लामा को चीनी आर्मी कैंप में बुलाया गया जहां दलाई लामा की हत्या का प्लान था ! दलाई लामा वहां नहीं गए !
- 15 मार्च को चीनी सेना उनके महल तक पहुंच गई ! इसी बीच दलाई लामा के सलाहकारों ने उन्हें तिब्बत छोड़ने की सलाह दी !
- 17 मार्च 1959 को चीनी सैनिक भेष मे दलाई लामा ने महल छोड़ दक्षिण की तरफ कदम बढ़ा दिया !
- भूखे प्यासे, कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए 31 मार्च को अरुणाचल प्रदेश के तवांग मठ पहुंचे !
- यह जानकर कि दलाई लामा भारत पहुंच गए हैं चीन बौखला गया और तिब्बत में कत्लेआम करने लगा !
- प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दलाई लामा को शरण दी !
- अप्रैल में दलाई लामा मसूरी के बिड़ला हाउस पहुंचे और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर 17 सूत्री समझौते को खारिज कर दिया !
- अप्रैल 1960 में दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला पहुंचे और वही से तिब्बत की निर्वासित सरकार चलती है !
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तिब्बत की निर्वासित सरकार और अमेरिका की बढ़ती नजदीकी
- तिब्बत को दुनिया का छत कहा जाता है लेकिन तिब्बत के ही लोग अब अपने लिए एक सुरक्षित छत के लिए तरस गए हैं !
- 31 मार्च 1959 को दलाई लामा लगभग 80 हजार तिब्बती लोगों के साथ अरुणाचल प्रदेश के तवांग मठ पहुंचे !
- भारत ने दलाई लामा के साथ-साथ सभी लोगों का स्वागत किया और उन्हें शरण दे दी !
- इन लोगों को कानूनी तौर पर “ रिफ्यूजी ” का दर्जा दिया गया ! तथा भारत ने इन्हें अपना विशिष्ट अतिथि माना !
- तिब्बत के लोगों को भारत ने अपना पूरा प्यार और समर्थन देने का आश्वासन दिया और तिब्बत के लोगों के सामने सिर्फ एक शर्त यह रखी की भारत की धरती से चीन के खिलाफ कोई शत्रुता पूर्ण गतिविधि संचालित नहीं करेंगे !
- भारत-तिब्बत की सांस्कृतिक घनिष्ठता ने बाहर से इन लोगों को अपने में मिला लिया और आज भारतीय बौद्ध तथा तिब्बती बौद्ध में अंतर करना कठिन है !
- पहले यह लोग उत्तराखंड के मसूरी में रहे फिर धर्मशाला से सटे मैकलोडगंज मे यह लोग रहने लगे ! यहां तिब्बतियों की संख्या ज्यादा होने के कारण इसे छोटा ल्हासा कहा जाता है !
- एक ही स्थान पर इतनी बड़ी संख्या में एक स्थान पर लोगों को रखने से वहां सामाजिक समस्या उत्पन्न हो सकती थी इसलिए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर इन्हें जमीन देने की अपील की !
- सभी राज्यों ने सकारात्मक रूख दिखाते हुए इन्हें अपना समझा और अपनाया !
- हिमाचल प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक जैसे राज्यों में तिब्बती लोगों को बताया गया !
- इनके विकास और जीवन यापन के लिए सभी विकल्प खुले रखे गए ! यह कृषि कर सकते थे, व्यापार कर सकते थे, सेवा दे सकते थे !
- बच्चों के लिए अलग से स्कूल खोले गए जिसमें तिब्बती शिक्षा के अलावा भारतीय सिलेबस में पढ़ाई होती है !
- इनके लिए सभी अस्पतालों के दरवाजे खुले हैं लेकिन यह अपनी तिब्बती चिकित्सा पद्धति को भी बनाए रख सकते हैं और यह प्रयोग भी किया जाता है !
- दलाई लामा ने मैक्लोडगंज में Central Tibetan secretariat gangchen kyishong की स्थापना की इसे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के नाम से जाना जाता है !
- केंद्रीय तिब्बती प्रशासन सेना और पुलिस को छोड़ कर एक सरकार के रूप में (निर्वासित सरकार) कार्य करती हैं !
- इनके पास सरकार के सभी विभाग एवं मंत्रालय हैं जो तिब्बती लोगों के हितों का ख्याल रखती है ! दलाई लामा इनके पथ प्रदर्शक के रूप में कार्य करते हैं !
- इसमें प्रधानमंत्री का पद, गृह मंत्री, विदेश मंत्री का पद आदि भी होते हैं !
- प्रधानमंत्री पद को तिब्बती भाषा में सिक्योंग कहा जाता है ! वर्तमान समय में इस पद पर लोबसांग संगेय है जो दार्जिलिंग भारत के हैं !
- केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का 11 महत्वपूर्ण देशों में कार्यालय है !
- तिब्बती सरकार एक सदनीय लोकतांत्रिक सरकार है जिसमें 44 सदस्य हैं और प्रत्येक 5 वर्ष पर उनका चुनाव होता है !
- यह संसद हर रूप में तिब्बत वापस लौटने का प्रयास करती है हालांकि युवा वर्ग तिब्बत को पूरी तरह स्वतंत्र देखना चाहता है !
- भारत इन्हें खास तरह का पहचान पत्र देता है ! यह पासपोर्ट तो नहीं है लेकिन यह उनके कहीं भी आने-जाने के लिए काफी है !
- केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का मानना है कि ऐतिहासिक रूप से तो उनके साथ गलत हुआ ही है इसके अलावा वर्तमान समय में भी चीन तिब्बत के साथ नस्लीय भेदभाव कर रहा है ! मकाउ, हांगकांग में चीनी मूल के लोग हैं इसलिए चीन ने इन्हें स्वायत्तता दे रखी है लेकिन हम चीन मूल के नहीं हैं इस कारण हमें स्वायत्तता नहीं दी जाती है !
- 1959, 1961 और 1965 में तिब्बत संयुक्त राष्ट्र संघ में अपील कर चुका है !
- 1963 में दलाई लामा ने प्रजातंत्रीय संविधान का प्रारूप रखा !
- 1987 में दलाई लामा ने पांच सूत्रीय शांति योजना यूनाइटेड स्टेट्स कांग्रेस के सामने पेश किया ! इसमें यह मांग थी कि
- पूरे तिब्बत को एक शांत क्षेत्र में परिवर्तित किया जाए !
- चीन की जनसंख्या स्थानांतरण की नीति को पूरी तरह छोड़ा जाए !
- तिब्बतियों के आधारभूत मानवीय अधिकार और पर्यावरण की पुनर्स्थापना और संरक्षण का प्रयास किया जाए तथा परमाणु कूड़ेदान ना बनाया जाए ! दरअसल चीन ने इस क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा परमाणु अपशिष्ट निपटान केंद्र बना रखा है !
- तिब्बत के भविष्य की स्थिति और चीनियों के साथ उनके संबंधों के विषय में गंभीर बात-चीत शुरू की जाए !
- दलाई लामा शांति और अहिंसा पर भरोसा रखते हैं इसी कारण 1989 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया !
- भारत ने तिब्बत के मुद्दे को बहुत ही गंभीरता और परिपक्वता से डील किया है और कभी भी इस मुद्दे का रणनीतिक उपयोग नहीं किया है !
- अमेरिका समय-समय पर तिब्बत के मुद्दे को सुनता रहा है और चीन से इसका समाधान करने की अपील भी करता आया है !
- इस समय अमेरिका और चीन के तनाव अपने सर्वोच्च बिंदु पर पहुंच गए हैं !
- इसी बीच अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर घोषित किया है कि वह तिब्बत की निर्वासित सरकार की कुछ फंडिंग करेगा !
- इस तरह अमेरिका तिब्बत को चीन के खिलाफ एक रणनीति के रूप में प्रयोग करने का मन बना चुका है !
- अमेरिका ने हाल ही में लगभग 1 मिलियन डॉलर की सहायता केंद्रीय तिब्बती प्रशासन CTA को दिया है !
- फंड का ट्रांसफर USAID (यूनाइटेड स्टेट एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) द्वारा किया गया है !
- इससे पहले अमेरिकी NGO संगठन और लोग तो मदद (फंड) करते आए थे लेकिन सरकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से ऐसा पहली बार किया गया है !
- तिब्बती निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री ने कहा है कि इससे सहायता का एक रास्ता खुला है भविष्य में बड़ी सहायता भी मिलेगी !
- इससे पहले अमेरिका और चीनी नागरिकों का वीजा कैंसिल कर चुका है जो तिब्बती लोगों के विषय में गलत सूचना फैलाते हैं या तिब्बती लोगों के मानव अधिकार का हनन करते हैं !
- माइक पॉम्पियो ने कहा है कि चीन को यह सुनिश्चित करना होगा कि तिब्बती लोगों के मानवाधिकार का हनन ना हो, वहां के पर्यावरण को प्रदूषित ना किया जाए, न्यूक्लियर डम्पिंग न किया जाए, नदियों को विषैला ना बनाया जाए !